अशोक जडी बूटी की दवाइयों में एक दिव्य रतन की तरह है। भारत मे इसका गुणगान प्राचीनकाल से ही होता रहा है।प्राचीनकाल में ख़ुशी ओर गमी को दूर करने के लिए अशोक वाटीकायों ओर उध्दानों का प्रयोग होता था।इसी कारण इसके नाम अपशोक, विशोक, शोकनाश रखे गए थे।अशोक के ओर भी कई नाम हैं। जैसे चिर , हेमपुष्प, कंकेली, कंटाचरणदोहडा, कर्णपूरक, केलिक, कर्णपूरा, दोषहारी, गन्धपुष्प, मधुपुष्प, पिंडपुष्प, रमा, रोगीतारु, सुभग, वामनघरिघटक, वाताशोक आदि अशोक के संस्कृत भाषा के नाम हैं।भारत में अशोक को हिन्दु धर्म में एक पवित्र वृक्ष माना गया है।प्रेम के देवता कामदेव के पांच पुष्प वाणों में एक पुष्प अशोक पुष्प भी है।
भारत में अशोक बिहार कर्नाटका, उतराखंड ,महाराष्ट्र, हिमाचल, पूर्वी बंगाल ओर हमेशा हरे भरे रहने वाले जंगलों में पाया जाता है।अशोक की कई प्रजातीया हैं। औषधी के रूप में दो प्रजातीयों का ही प्रयोग किया जाता है।औषधी के रूप मे अशोक का प्रयोग हजारो सालो से हो रहा है।
अशोक (Saraca asoca (Roxb) willd) 9 से 10 मीटर ऊँचा सदा हरा-भरा रहने वाला पेड़ है। दवाइयों के रूप मे इसकी छाल का ही प्रयोग ज़्यादातर किया जाता है।इसके पत्ते, फूलों और बीजों को भी औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है। अशोक की छाल का रंग गहरा भूरा होता है।पत्ते हरे लम्बे और नुकीले होते हैं।इसमें पीले से नारंगी और बाद में लाल रंग के हो जाने वाले फूल आते हैं।फलीयों के रूप मे इसमे फल आते हैं। अशोक के तने मे से सफ़ेद रंग का रस निकलता है ।जह रस बाद में सूखकर लाल हो जाता है। इसे अशोक का गोंद कहते हैं।
भिभिन्न भाषाओ में नाम :
Sanskrit : Anganapriya, Ashok, Chira, Dohali, Gandhapushpa, Doshahari, Hemapushpa, Apshoka, Shokaharata, Shokanasha, Vanjula, Vishoka
English : Ashok tree.
Hindi : Sita ashok, Ashok.
Telugu : Ashokamu.
Pinjabi : Ashok.
Marathi : Ashok, Jasundi.
Bengali : Ashoka.
Assamese : Ashoka
Malayalam : Ashokam.
Tamil : Ashogam.
अशोक गर्भाशय (Uterus) की मुख्य दबा है। जय स्त्री रोगों में बहुत फ़ायदा करती है।स्त्रीओं में होने वाले रोग श्रवेत प्रदर,बॉज्ञपन,रक्त प्रदर,अतिसार,र्दद,सूजन,पेशाब मे र्दद ,उदर रोगों को नष्ट करने वाला है।अशोक स्वाद में मधुर,कषाय,तिक्त है।जह लघु, शीत, रुक्ष गुणो वाला है।
अशोक के दवा के रूप मे प्रयोग (Medicinal uses of Ashok tree )
स्त्री रोगो में अशोक की छाल से बनी अशोकारिष्ट और अशोक घृत बहुत ही प्रभावकारी दवाएँ हैं।
1.सफ़ेद प्रदर लिकोरया (Leucorrhoea) अशोक छाल का चूर्ण बराबर मात्रा मे मिर्शी मिलाकर दिन में दो बार, गाय के दूध के साथ लेने से कुछ ही दिनों मे स्फेद प्रदर रोग ठीक हीने लगेगा।
2.रक्त प्रदर मे उपयोगी (bleeding) अशोक के 2-3 ग्राम फूलो को पानी मे पीसकर पीने से रक्त प्रदर मे लाभ होता है।
3. टूटी हड्डी ठीक करे (Bone fracture) :- 6 ग्राम अशोक छाल चूर्ण दूध के साथ लेने ओर इसी का लेप करने से टूटी हड्डी ठीक हो जाती है ओर दर्द भी खत्म होता है।
4. चमड़ी विकार में (Skin problems) : अशोक की साल के रस मे सरसों पीसकर छाया मे सुखाकर रख लें ओर जब भी लगाना हो तो अशोक शाल के रस मे पीसकर लगाए।इससे चमड़ी का रंग निखरता है।
* मुहासे (Pimples) : अशोक शाल का कवाथ उबाल लें ओर गाड़ा होने पर ठंडा कर ले ओर बराबर मात्रा मे सरसों का तेल मिलाकर फोड़े -फुंसी, मुहासो पर लगाए।
5. पथरी रोग में उपयोगी (Urinari Stone) :अशोक के 2-3 ग्राम बीजों को पानी मे पीसकर दो चम्मच की मात्रा मे लेने से पथरी के दर्द मे लाभ होता है।
6. अशोकारिष्ट (Ashokarishta) : 20-25 मि:ली अशोकारिष्ट को रोज़ाना खाना खाने के बाद लेने से रक्त प्रदर, जवर, रक्तपित, शवेतप्रदर, मन्दाग्नि, अरुचि, शोथ आदि रोगों मे बहुत लाभ होता है।
Note :- अशोक के वृक्ष के बारे मे दी गई सारी जानकारी आपकी अच्छी सेहत के लिए है। गंम्भीर समस्याओं मे चिकित्सक की सलाह से ही इसका प्रयोग करे।